रुद्राक्ष धारण करने के नियम और फायदे, सनातन हिन्दू धर्म में रुद्राक्ष का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इसे केवल एक सामान्य बीज नहीं, बल्कि भगवान शिव का साक्षात आशीर्वाद माना जाता है। “रुद्राक्ष” शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – “रुद्र” अर्थात् भगवान शिव और “अक्ष” अर्थात् आंसू। पौराणिक कथाओं के अनुसार, रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई थी, जो उन्होंने गहन ध्यान के बाद लोक कल्याण की भावना से बहाए थे।
यह पवित्र मनका न केवल आध्यात्मिक उन्नति में सहायक है, बल्कि इसके अनेक शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभ भी हैं।हमारी वेबसाइट greathindu.com पर आज हम आपको रुद्राक्ष के विभिन्न पहलुओं, जैसे इसके प्रकार, इसे धारण करने के नियम, और इससे प्राप्त होने वाले अद्भुत फायदों के बारे में विस्तृत जानकारी देंगे। यदि आप रुद्राक्ष धारण करने का विचार कर रहे हैं या इसके बारे में अधिक जानना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा।

जाने रुद्राक्ष धारण करने के नियम और फायदे
रुद्राक्ष क्या है?
रुद्राक्ष वास्तव में “एलाओकार्पस गैनिट्रस” (Elaeocarpus ganitrus) नामक एक विशेष वृक्ष के फल का बीज है। ये वृक्ष मुख्यतः हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों, नेपाल, इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा और भारत के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं। रुद्राक्ष की सतह पर प्राकृतिक रूप से कुछ धारियां या मुख बने होते हैं, जिनके आधार पर इनका वर्गीकरण और महत्व निर्धारित होता है। ये मुख 1 से लेकर 21 या उससे भी अधिक हो सकते हैं, और प्रत्येक मुख वाले रुद्राक्ष का अपना विशिष्ट प्रभाव और देवता से संबंध होता है।
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रुद्राक्ष का पौराणिक महत्व
शिव पुराण, देवी भागवत पुराण, पद्म पुराण, लिंग पुराण और स्कन्द पुराण जैसे अनेक प्राचीन हिन्दू ग्रंथों में रुद्राक्ष की महिमा का विस्तृत वर्णन मिलता है। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, त्रिपुरासुर नामक एक शक्तिशाली असुर ने देवताओं को त्रास्त कर दिया था। उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए जब भगवान शिव ने कई वर्षों तक ध्यान किया और अपनी आंखें खोलीं, तो उनकी आंखों से करुणा और लोक कल्याण की भावना से आंसू की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिरीं।
इन्हीं आंसुओं से रुद्राक्ष के वृक्षों की उत्पत्ति हुई। इसलिए, रुद्राक्ष को भगवान शिव का प्रत्यक्ष स्वरूप और उनका आशीर्वाद माना जाता है। इसे धारण करने से व्यक्ति को शिव की कृपा प्राप्त होती है और वह अनेक प्रकार के कष्टों से मुक्त हो जाता है।
असली रुद्राक्ष की पहचान कैसे करें?
बाजार में असली रुद्राक्ष के नाम पर नकली रुद्राक्ष भी बेचे जाते हैं। इसलिए, असली रुद्राक्ष की पहचान करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। हालांकि कोई भी परीक्षण 100% अचूक नहीं होता, फिर भी कुछ सामान्य तरीके हैं जिनसे मदद मिल सकती है:
पानी में डूबना: आमतौर पर माना जाता है कि असली रुद्राक्ष पानी में डूब जाता है, जबकि नकली या हल्का रुद्राक्ष तैर सकता है। हालांकि, यह परीक्षण हमेशा सही नहीं होता क्योंकि भारी लकड़ी से बना नकली रुद्राक्ष भी डूब सकता है या असली, कच्चा रुद्राक्ष भी कभी-कभी तैर सकता है।
सतह की बनावट: असली रुद्राक्ष की सतह प्राकृतिक रूप से खुरदरी और असमान होती है। इसके मुखों के बीच की धारियां स्पष्ट और प्राकृतिक दिखती हैं। यदि रुद्राक्ष की सतह अत्यधिक चिकनी या कृत्रिम रूप से बनाई हुई दिखे, तो उसके नकली होने की संभावना है।
मुखों की जांच: मुखों को ध्यान से देखें। वे प्राकृतिक रूप से बने होने चाहिए, न कि किसी औजार से काटे या चिपकाए हुए।
तांबे के सिक्कों के बीच घूमना (अविश्वसनीय परीक्षण): एक पुरानी मान्यता है कि दो तांबे के सिक्कों के बीच रखने पर असली रुद्राक्ष घूमता है। हालांकि, इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और यह अक्सर गलत परिणाम देता है।
एक्स-रे: यह एक अधिक विश्वसनीय तरीका है, जिससे रुद्राक्ष के आंतरिक कक्षों (compartments) की संख्या का पता लगाया जा सकता है, जो मुखों की संख्या के अनुरूप होनी चाहिए।
विश्वसनीय विक्रेता से खरीदें: सबसे सुरक्षित तरीका है कि किसी प्रतिष्ठित और विश्वसनीय विक्रेता या संस्था से ही रुद्राक्ष खरीदें जो उसकी प्रामाणिकता की गारंटी दे सके।
सावधान रहें और केवल सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास न करें। यदि संभव हो तो किसी अनुभवी ज्योतिषी या रुद्राक्ष विशेषज्ञ से सलाह लें।
विभिन्न प्रकार के रुद्राक्ष और उनके लाभ (मुख के आधार पर)
रुद्राक्ष के मुखों की संख्या के आधार पर उनके अलग-अलग नाम, अधिपति देवता और लाभ होते हैं। यहां कुछ प्रमुख रुद्राक्षों का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:
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विभिन्न मुखी रुद्राक्ष और उनके विशिष्ट फायदे

एक मुखी रुद्राक्ष:
अधिपति देवता: भगवान शिव (साक्षात परब्रह्म स्वरूप)
ग्रह: सूर्य
लाभ: इसे अत्यंत दुर्लभ और शक्तिशाली माना जाता है। यह मोक्ष प्रदाता, ध्यान में एकाग्रता बढ़ाने वाला, आत्मविश्वास में वृद्धि करने वाला और सभी प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला कहा गया है। यह सिरदर्द, नेत्र रोग और हृदय रोगों में भी लाभकारी माना जाता है।
दो मुखी रुद्राक्ष:
अधिपति देवता: अर्धनारीश्वर (शिव और शक्ति का संयुक्त स्वरूप)
ग्रह: चंद्रमा
लाभ: यह पारिवारिक सुख, पति-पत्नी के संबंधों में मधुरता, मानसिक शांति और भावनात्मक संतुलन प्रदान करता है। यह गुरु-शिष्य संबंध और व्यापारिक साझेदारियों में भी सामंजस्य लाता है।
तीन मुखी रुद्राक्ष:
अधिपति देवता: अग्नि देव
ग्रह: मंगल
लाभ: यह आत्मविश्वास, साहस और ऊर्जा प्रदान करता है। यह पाचन तंत्र को सुधारता है, आलस्य को दूर करता है और अतीत के बुरे कर्मों के प्रभाव को कम करता है। दुर्घटनाओं से रक्षा करता है।
चार मुखी रुद्राक्ष:
अधिपति देवता: ब्रह्मा जी
ग्रह: बुध
लाभ: यह ज्ञान, बुद्धि, रचनात्मकता और वाणी की शक्ति को बढ़ाता है। विद्यार्थियों, लेखकों, वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के लिए यह विशेष रूप से लाभकारी है। यह स्मरण शक्ति और एकाग्रता में सुधार करता है।
पांच मुखी रुद्राक्ष:
अधिपति देवता: कालाग्नि रुद्र (भगवान शिव का स्वरूप)
ग्रह: बृहस्पति
लाभ: यह सबसे अधिक पाया जाने वाला रुद्राक्ष है। यह सामान्य कल्याण, स्वास्थ्य, शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है। यह रक्तचाप को नियंत्रित करने और हृदय रोगों से बचाने में सहायक माना जाता है। यह अकाल मृत्यु के भय से भी बचाता है।
छह मुखी रुद्राक्ष:
अधिपति देवता: भगवान कार्तिकेय
ग्रह: शुक्र
लाभ: यह इच्छाशक्ति, साहस, नेतृत्व क्षमता और आकर्षण शक्ति को बढ़ाता है। यह कानूनी मामलों में सफलता और शत्रुओं पर विजय दिलाता है। यह ज्ञानेंद्रियों को नियंत्रित करने में मदद करता है।
सात मुखी रुद्राक्ष:
अधिपति देवता: देवी महालक्ष्मी
ग्रह: शनि
लाभ: यह धन, समृद्धि, सौभाग्य और वित्तीय स्थिरता प्रदान करता है। यह शनि के अशुभ प्रभावों (जैसे साढ़ेसाती या ढैय्या) को कम करने में सहायक माना जाता है। यह स्वास्थ्य और दीर्घायु भी प्रदान करता है।
आठ मुखी रुद्राक्ष:
अधिपति देवता: भगवान गणेश
ग्रह: राहु
लाभ: यह सभी प्रकार की बाधाओं और कठिनाइयों को दूर करता है। यह बुद्धि, ज्ञान और लेखन कौशल को बढ़ाता है। यह अदालती मामलों में सफलता और शत्रुओं पर विजय दिलाता है। यह त्वचा रोगों और फेफड़ों की समस्याओं में भी राहत पहुंचाता है।

नौ मुखी रुद्राक्ष:
अधिपति देवता: देवी दुर्गा (नौ दुर्गा स्वरूप)
ग्रह: केतु
लाभ: यह शक्ति, साहस, निर्भयता और ऊर्जा प्रदान करता है। यह नकारात्मक शक्तियों, भूत-प्रेत और ऊपरी बाधाओं से रक्षा करता है। यह केतु के अशुभ प्रभावों को शांत करता है।
दस मुखी रुद्राक्ष:
अधिपति देवता: भगवान विष्णु (दशावतार स्वरूप)
ग्रह: सभी नौ ग्रह (शांति कारक)
लाभ: यह सभी ग्रहों के अशुभ प्रभावों से बचाता है और जीवन में शांति और सद्भाव लाता है। यह तंत्र-मंत्र, जादू-टोना और नकारात्मक ऊर्जाओं से रक्षा करता है।
ग्यारह मुखी रुद्राक्ष:
अधिपति देवता: भगवान हनुमान (एकादश रुद्र)
ग्रह: मंगल (शक्ति स्वरूप)
लाभ: यह साहस, शक्ति, निडरता और आत्मविश्वास प्रदान करता है। यह ध्यान और योग साधना में सहायक है। यह निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाता है और यात्राओं में सुरक्षा प्रदान करता है।
बारह मुखी रुद्राक्ष:
अधिपति देवता: सूर्य देव (द्वादश आदित्य)
ग्रह: सूर्य
लाभ: यह नेतृत्व क्षमता, प्रसिद्धि, तेज और प्रशासनिक शक्ति प्रदान करता है। यह राजनीतिज्ञों, प्रशासकों और प्रबंधकों के लिए उत्तम है। यह हृदय रोगों और नेत्र रोगों से बचाता है।
तेरह मुखी रुद्राक्ष:
अधिपति देवता: कामदेव और इंद्र देव
ग्रह: शुक्र
लाभ: यह आकर्षण, सम्मोहन शक्ति और भौतिक सुख-सुविधाएं प्रदान करता है। यह प्रेम संबंधों में सफलता और इच्छाओं की पूर्ति में सहायक है।
चौदह मुखी रुद्राक्ष (देवमणि):
अधिपति देवता: भगवान शिव और हनुमान जी
ग्रह: शनि और मंगल
लाभ: इसे अत्यंत शक्तिशाली और दुर्लभ माना जाता है। यह अंतर्ज्ञान, छठी इंद्री को जागृत करने और भविष्य का पूर्वाभास करने की शक्ति प्रदान करता है। यह सभी प्रकार के संकटों से बचाता है और आध्यात्मिक उन्नति के उच्चतम शिखर तक ले जाता है।
गौरी शंकर रुद्राक्ष: दो रुद्राक्ष प्राकृतिक रूप से जुड़े हुए होते हैं, जो भगवान शिव और माता पार्वती के एकात्म स्वरूप का प्रतीक हैं। यह पारिवारिक सुख, एकता और संबंधों में मधुरता के लिए उत्तम माना जाता है।
गणेश रुद्राक्ष: जिस रुद्राक्ष पर प्राकृतिक रूप से सूंड जैसी आकृति उभरी होती है, उसे गणेश रुद्राक्ष कहते हैं। यह भगवान गणेश का प्रतीक है और सभी बाधाओं को दूर कर शुभता प्रदान करता है।
रुद्राक्ष पहनने के नियम (Rudraksha Pahanne ke Niyam)
रुद्राक्ष एक पवित्र मनका है और इसे धारण करने के कुछ विशेष नियम हैं जिनका पालन करने से इसके पूर्ण लाभ प्राप्त होते हैं।
शुद्धिकरण और प्राण प्रतिष्ठा:
नया रुद्राक्ष पहनने से पहले उसे शुद्ध करना और उसकी प्राण प्रतिष्ठा करना आवश्यक है।
इसके लिए रुद्राक्ष को गंगाजल या कच्चे दूध में कुछ देर डुबोकर रखें। फिर इसे स्वच्छ जल से धो लें।
किसी शुभ दिन (सोमवार, शिवरात्रि या श्रावण मास उत्तम हैं) पर, स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
पूजा स्थान पर शिवजी की मूर्ति या चित्र के समक्ष रुद्राक्ष को रखें।
पंचोपचार (धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, चंदन) से शिवजी और रुद्राक्ष की पूजा करें।
“ॐ नमः शिवाय” मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें।
यदि आपको विशिष्ट मुखी रुद्राक्ष का बीज मंत्र ज्ञात है (जैसे एक मुखी के लिए “ॐ ह्रीं नमः”, पांच मुखी के लिए “ॐ ह्रीं नमः”), तो उसका भी जाप कर सकते हैं।
इसके बाद रुद्राक्ष को धारण करें। यह प्रक्रिया किसी योग्य पंडित से भी कराई जा सकती है।
कब और कैसे पहनें:
रुद्राक्ष को सोमवार, शिवरात्रि, ग्रहण काल या किसी अन्य शुभ मुहूर्त में धारण करना चाहिए।
इसे लाल, पीले या सफेद रंग के रेशमी या सूती धागे में या सोने अथवा चांदी की चेन में पहन सकते हैं।
रुद्राक्ष को गले में इस प्रकार पहनना चाहिए कि वह हृदय के पास स्पर्श करे। इसे कलाई पर ब्रेसलेट के रूप में भी पहना जा सकता है।
रुद्राक्ष की माला में मनकों की संख्या 27, 54 या 108 (साथ में एक सुमेरु) होनी चाहिए।
क्या करें
रुद्राक्ष को पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ धारण करें।
प्रतिदिन स्नान के बाद रुद्राक्ष के दर्शन करें और “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें।
अपने रुद्राक्ष को स्वच्छ रखें। समय-समय पर इसे गंगाजल से धोकर चंदन का तिलक लगा सकते हैं।
अपने रुद्राक्ष को किसी और को पहनने के लिए न दें और न ही किसी और का पहना हुआ रुद्राक्ष स्वयं पहनें (विशेषकर यदि वह प्राण प्रतिष्ठित हो)।
यदि आप रुद्राक्ष को कुछ समय के लिए उतारते हैं, तो उसे पूजा स्थान पर या किसी स्वच्छ और पवित्र स्थान पर रखें।
क्या न करें (Don’ts):
पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार, रुद्राक्ष को अशुद्ध अवस्था या अपवित्र स्थानों पर नहीं ले जाना चाहिए। जैसे, शौचालय जाते समय या किसी शवयात्रा/श्मशान घाट पर जाते समय इसे उतार देना चाहिए।
मांस-मदिरा का सेवन करते समय रुद्राक्ष न पहनें। यदि आप इनका सेवन करते हैं, तो उस अवधि में रुद्राक्ष उतार दें और पुनः शुद्ध होकर पहनें।
सोते समय रुद्राक्ष उतारने की सलाह दी जाती है ताकि वह टूटे नहीं और आपको भी आराम रहे। हालांकि, कुछ लोग इसे पहनकर भी सोते हैं। यह व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर करता है।
स्त्रियां मासिक धर्म के दौरान रुद्राक्ष न पहनें, ऐसी भी एक मान्यता है। हालांकि, इस विषय पर मतभेद हैं और कुछ विद्वान इसे आवश्यक नहीं मानते। अपनी श्रद्धा और पारिवारिक परंपरा के अनुसार निर्णय लें।
रुद्राक्ष के प्रति कभी भी अनादर का भाव न रखें।
रुद्राक्ष पहनने के सामान्य फायदे (General Benefits of Wearing Rudraksha)
विभिन्न मुखी रुद्राक्षों के विशिष्ट लाभों के अतिरिक्त, रुद्राक्ष धारण करने के कई सामान्य फायदे भी हैं:
शारीरिक स्वास्थ्य:
रक्तचाप नियंत्रण: माना जाता है कि पांच मुखी रुद्राक्ष विशेष रूप से उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद करता है।
हृदय स्वास्थ्य: यह हृदय को स्वस्थ रखने और हृदय रोगों के जोखिम को कम करने में सहायक है।
तनाव और चिंता में कमी: रुद्राक्ष की विद्युत-चुंबकीय तरंगें मस्तिष्क को शांत करती हैं, जिससे तनाव, चिंता और अवसाद कम होता है।
बेहतर नींद: यह अनिद्रा की समस्या को दूर कर गहरी और आरामदायक नींद प्रदान करता है।
शरीर में ऊर्जा का संतुलन: यह शरीर के चक्रों को संतुलित कर ऊर्जा के प्रवाह को सुचारू बनाता है।
मानसिक शांति और एकाग्रता:
यह मन को शांत करता है और विचारों की स्पष्टता लाता है।
यह एकाग्रता और स्मरण शक्ति को बढ़ाता है, जो विद्यार्थियों और ध्यान करने वालों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है।
यह नकारात्मक विचारों को दूर कर सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करता है।
आध्यात्मिक उन्नति:
यह ध्यान और साधना में गहराई लाने में सहायक है।
यह व्यक्ति को अपने अंतर्मन से जुड़ने और आध्यात्मिक जागृति की ओर ले जाता है।
यह कुंडलिनी जागरण में भी सहायक माना जाता है।
नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा:
रुद्राक्ष एक सुरक्षा कवच की तरह काम करता है और पहनने वाले को नकारात्मक ऊर्जाओं, बुरी नजर, भूत-प्रेत और काले जादू से बचाता है।
यह आस-पास के वातावरण को शुद्ध करता है और सकारात्मकता का संचार करता है।
आत्मविश्वास और सकारात्मकता:
यह पहनने वाले में आत्मविश्वास, साहस और आत्म-सम्मान को बढ़ाता है।
यह जीवन में सकारात्मकता लाता है और चुनौतियों का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है।
ग्रह दोष निवारण:
विभिन्न मुखी रुद्राक्ष विशिष्ट ग्रहों से संबंधित होते हैं और उनके अशुभ प्रभावों को शांत करने में मदद करते हैं। ज्योतिषीय सलाह से सही रुद्राक्ष धारण करने पर ग्रह दोषों का निवारण हो सकता है।
रुद्राक्ष का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
आधुनिक विज्ञान भी रुद्राक्ष के गुणों पर शोध कर रहा है। कुछ अध्ययनों से पता चला है कि रुद्राक्ष में डायइलेक्ट्रिक (Dielectric), पैरामैग्नेटिक (Paramagnetic), और इंडक्टिव (Inductive) गुण होते हैं।
विद्युत-चुंबकीय गुण: माना जाता है कि रुद्राक्ष की विद्युत-चुंबकीय तरंगें मानव शरीर के ऊर्जा क्षेत्र (Aura) के साथ संपर्क स्थापित करती हैं और उसे संतुलित करती हैं। यह शरीर की कोशिकाओं के कार्य को भी प्रभावित कर सकती हैं, जिससे स्वास्थ्य लाभ होता है।
गतिशील ध्रुवीयता (Dynamic Polarity): रुद्राक्ष में कुछ ऐसी क्षमता होती है कि वह शरीर में अवरुद्ध ऊर्जा प्रवाह को खोल सकता है, ठीक वैसे ही जैसे चुंबक काम करता है।
हालांकि इन वैज्ञानिक पहलुओं पर अभी और शोध की आवश्यकता है, लेकिन सदियों से चले आ रहे अनुभव और पारंपरिक ज्ञान रुद्राक्ष की प्रभावशीलता की पुष्टि करते हैं।
निष्कर्ष
रुद्राक्ष केवल एक आभूषण नहीं, बल्कि भगवान शिव का अमूल्य प्रसाद है। यह शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर अनगिनत लाभ प्रदान करता है। इसे सही नियमों का पालन करते हुए, पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ धारण करने से व्यक्ति जीवन में शांति, समृद्धि, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर सकता है।
greathindu.com आशा करता है कि रुद्राक्ष पहनने के नियमों और फायदों पर दी गई यह विस्तृत जानकारी आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी। यदि आपके मन में कोई और प्रश्न हो, तो आप किसी विद्वान ज्योतिषी या रुद्राक्ष विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लें।
FAQ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
क्या महिलाएं रुद्राक्ष पहन सकती हैं?
हाँ, महिलाएं बिल्कुल रुद्राक्ष पहन सकती हैं। प्राचीन काल से ही महिलाएं रुद्राक्ष धारण करती आई हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार मासिक धर्म के दौरान इसे उतारने की सलाह दी जाती है, लेकिन यह व्यक्तिगत श्रद्धा पर निर्भर करता है।
क्या सोते समय रुद्राक्ष पहनना चाहिए?
अक्सर सोते समय रुद्राक्ष उतारने की सलाह दी जाती है ताकि वह टूटे नहीं या सोते समय असुविधा न हो। हालांकि, यदि आपको कोई परेशानी नहीं है तो आप इसे पहनकर भी सो सकते हैं।
रुद्राक्ष कितने समय तक प्रभावशाली रहता है?
असली रुद्राक्ष जीवन भर प्रभावशाली रहता है, बशर्ते उसकी पवित्रता और उचित देखभाल की जाए। समय-समय पर इसे शुद्ध करते रहना चाहिए।
क्या टूटा हुआ या खंडित रुद्राक्ष पहन सकते हैं?
आमतौर पर खंडित या टूटा हुआ रुद्राक्ष पहनने की सलाह नहीं दी जाती है। ऐसे रुद्राक्ष को किसी पवित्र नदी में विसर्जित कर देना चाहिए या किसी पेड़ के नीचे रख देना चाहिए और नया रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
कौन सा रुद्राक्ष सबसे अच्छा है?
सभी रुद्राक्ष अपने-अपने स्थान पर महत्वपूर्ण हैं। आपके लिए कौन सा रुद्राक्ष सबसे अच्छा है, यह आपकी जन्मकुंडली, आपकी समस्याओं और आपकी आवश्यकताओं पर निर्भर करता है। इसके लिए किसी अनुभवी ज्योतिषी से सलाह लेना उत्तम रहता है। हालांकि, पांच मुखी रुद्राक्ष को कोई भी व्यक्ति सामान्य कल्याण के लिए पहन सकता है।
|| ॐ नमः शिवाय ||