दक्षिण भारत का प्रसिद्ध सबरीमाला अयप्पा मंदिर अब महिलाओं के लिए भी खुल चुका है, सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद। यह मंदिर भगवान अयप्पा को समर्पित है, जिन्हें भगवान शिव और विष्णु के संयोग से उत्पन्न माना जाता है। अयप्पा के जन्म और उनके जीवन की कहानी बेहद दिलचस्प और अद्भुत है। तो चलिए, जानते हैं भगवान अयप्पा की इस रहस्यमयी कथा को विस्तार से

भगवान अयप्पा को भगवान शिव और भगवान विष्णु के पुत्र के रूप में पूजा जाता है। कहा जाता है कि जब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया, तब भगवान शिव उस रूप से आकर्षित हो गए और उसी संयोग से भगवान अयप्पा का दिव्य जन्म हुआ। अयप्पा की भक्ति खासकर दक्षिण भारत में बहुत गहराई से जुड़ी हुई है। हालांकि, इनके मंदिर अब देश के कई हिस्सों में देखने को मिलते हैं, और ज़्यादातर में दक्षिण भारतीय वास्तुशिल्प की छाप साफ नज़र आती है।
भगवान अयप्पा को लोग ‘हरिहरन’ नाम से भी जानते हैं। इस नाम का अर्थ है—हरि यानी भगवान विष्णु और हर यानी भगवान शिव के पुत्र। इसलिए उन्हें ‘हरिहरन’ कहा जाता है। इसके अलावा, उन्हें ‘मणिकंदन’ नाम से भी पुकारा जाता है। इस नाम के पीछे भी एक दिलचस्प वजह है—‘मणि’ यानी सोने की छोटी घंटी और ‘कंदन’ यानी गला। कहा जाता है कि जब भगवान अयप्पा का जन्म हुआ, तो उनके गले में एक स्वर्ण मणि (घंटी) बंधी हुई थी, जो उन्हें उनके माता-पिता शिव और मोहिनी ने पहनाई थी। उसी आधार पर उन्हें मणिकंदन कहा गया।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान अयप्पा के जन्म के बाद भगवान शिव और मोहिनी रूप में प्रकट हुए भगवान विष्णु ने उनके गले में एक स्वर्ण कंठिका पहनाई और उन्हें पंपा नदी के किनारे छोड़ दिया। उसी समय पंडालम राज्य के राजा राजशेखर, जो संतानहीन थे, वहां से गुज़रे और इस दिव्य बालक को देखकर उन्होंने उसे अपनाने का निश्चय किया। उन्होंने अयप्पा को अपने पुत्र की तरह प्यार और परवरिश दी। आज का पंडालम, केरल राज्य का एक प्रसिद्ध नगर है, जहां भगवान अयप्पा से जुड़ी कई यादें आज भी जीवित हैं।
जब अयप्पा पंडालम के महल में रहने लगे, तो कुछ समय बाद रानी ने भी एक पुत्र को जन्म दिया। अपने जैविक पुत्र के जन्म के बाद रानी का व्यवहार अयप्पा के प्रति बदलने लगा। जो पहले उन्हें पुत्र की तरह स्नेह देती थीं, अब वही दूरी बनाने लगीं। राजा राजशेखर यह बदलाव महसूस कर रहे थे और उन्हें अयप्पा के प्रति हो रहे अन्याय का आभास था। उन्होंने एक दिन अयप्पा से क्षमा मांगी, क्योंकि वह जानते थे कि उनके परिवार में अयप्पा के साथ न्याय नहीं हो रहा था।
रानी के मन में यह भय समा गया था कि राजा राजशेखर, अयप्पा से इतना प्रेम करते हैं कि कहीं राजगद्दी उसी को न सौंप दें। इसी डर से उन्होंने एक चाल चली—उन्होंने बीमार होने का नाटक किया और यह संदेश अयप्पा तक भिजवाया कि वह तभी ठीक होंगी जब उन्हें बाघिन का दूध मिलेगा। यह एक साजिश थी, ताकि अयप्पा जंगल में जाकर राक्षसी महिषी के हाथों मारे जाएं।
लेकिन अयप्पा तो दिव्य पुत्र थे। वे बिना किसी डर के जंगल की ओर निकल पड़े। जब महिषी ने उन पर हमला किया, तो अयप्पा ने उसे पराजित कर उसका वध कर दिया। और केवल बाघिन का दूध ही नहीं, बल्कि स्वयं बाघिन पर सवार होकर लौटे, मानो यह जताने आए हों कि मां के लिए असंभव भी संभव है। उनकी यह लीला आज भी श्रद्धा से सुनाई जाती है।

जब अयप्पा बाघिन की सवारी करते हुए जंगल से लौटे, तो यह दृश्य देखकर पूरे राज्य में हलचल मच गई। लोग आश्चर्यचकित रह गए कि एक बालक न केवल जीवित लौटा, बल्कि बाघिन को वश में करके उसकी सवारी करता हुआ आया है। चारों ओर ‘स्वामी अयप्पा की जय’ के जयकारे गूंज उठे। उस पल राजा राजशेखर को यह एहसास हुआ कि अयप्पा कोई साधारण बालक नहीं, बल्कि एक दिव्य आत्मा हैं। उन्होंने रानी के व्यवहार पर शर्मिंदा होकर अयप्पा से क्षमा मांगी।
लेकिन अपने पिता की पीड़ा देखकर अयप्पा ने राज्य छोड़ने का निर्णय लिया। उन्होंने राजा से विनम्रता से कहा कि वे सबरी की पहाड़ियों में उनके नाम का एक मंदिर बनवाएं, ताकि वे सदा के लिए इस धरती पर याद किए जाएं। यह मंदिर उनके प्रेम, त्याग और दिव्यता की अमर प्रतीक बन जाए। इसके बाद अयप्पा स्वर्गलोक की ओर प्रस्थान कर गए।
अपने पुत्र अयप्पा की अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए राजा राजशेखर ने सबरी की पवित्र पहाड़ियों में एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। जब मंदिर पूरी तरह बनकर तैयार हुआ, तब स्वयं भगवान परशुराम ने वहां भगवान अयप्पा की दिव्य मूर्ति बनाई और मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर उस मूर्ति को मंदिर में विधिपूर्वक स्थापित किया।
उस दिन से लेकर आज तक, भगवान अयप्पा के इस रूप की पूजा बड़े श्रद्धा और विश्वास के साथ की जाती है। यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि करोड़ों भक्तों की आस्था, भक्ति और विश्वास का प्रतीक बन चुका है।
जब मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया, तो उसकी बहन महिषी इस घटना से आक्रोशित हो उठी। बदले की भावना से वह ब्रह्माजी की घोर तपस्या में लीन हो गई। उसकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर जब ब्रह्माजी प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा, तो महिषी ने अत्यंत चालाकी से वर मांगा कि उसकी मृत्यु केवल भगवान शिव और भगवान विष्णु के संतान के हाथों ही संभव हो। उसने यह वरदान इसलिए मांगा क्योंकि ब्रह्माजी ने उसे अमरता देने से साफ इनकार कर दिया था।
महिषी को यह विश्वास था कि शिव और विष्णु का पुत्र होना असंभव है, इसलिए वह स्वयं को अजेय समझने लगी। जैसे ही उसे यह वरदान प्राप्त हुआ, उसने त्रिलोक में हाहाकार मचा दिया। तब भक्तों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया—और यही लीला भगवान अयप्पा के जन्म का आधार बनी।
सबरीमाला अयप्पा मंदिर की प्रमुख विशेषताएँ और परंपराएँ
सबरीमाला की यात्रा किसी अन्य तीर्थयात्रा से काफी अलग है। इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएँ और परंपराएँ इस प्रकार हैं:
- मंडलम व्रत (41 दिन का व्रत): यह सबरीमाला यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। भक्त ‘माला’ (तुलसी या रुद्राक्ष की माला) धारण करते हैं और 41 दिनों तक कठोर ब्रह्मचर्य, सादा भोजन (मांस, शराब का त्याग), नंगे पैर चलना, बाल और दाढ़ी न काटना जैसे नियमों का पालन करते हैं। इस अवधि को आत्म-शुद्धि और आध्यात्मिक तैयारी का समय माना जाता है।
- महिलाओं का प्रवेश वर्जित: सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। ऐसा माना जाता है कि भगवान अयप्पा एक नित्य ब्रह्मचारी हैं और इस आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश से उनकी तपस्या भंग हो सकती है। हालांकि, हाल के वर्षों में इस नियम पर कानूनी बहस हुई है।
- ‘इरुमुडी केट्टू’ (पवित्र पोटली): भक्त अपनी यात्रा के दौरान अपने सिर पर ‘इरुमुडी केट्टू’ नामक एक पवित्र पोटली लेकर चलते हैं। इसमें प्रसाद, नारियल, घी और अन्य पूजा सामग्री होती है। यह पोटली यात्रा के दौरान भक्त की पवित्रता और भक्ति का प्रतीक है।
- पवित्र 18 सीढ़ियाँ (पदिनेत्तम पदी): मंदिर तक पहुँचने के लिए भक्तों को 18 पवित्र सीढ़ियों से होकर गुजरना पड़ता है। इन सीढ़ियों को पार करने से पहले, भक्त को ‘शरणम अयप्पा’ का जाप करते हुए शुद्ध होना पड़ता है। इन सीढ़ियों का आध्यात्मिक महत्व बहुत अधिक है।
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सबरीमाला अयप्पा मंदिर के चमत्कारिक गुण
सबरीमाला से कई चमत्कारी घटनाएँ और कहानियाँ जुड़ी हुई हैं, जो भक्तों की आस्था को और गहरा करती हैं:
- मकरविलक्कू (मकर ज्योति): यह सबसे प्रसिद्ध चमत्कार है जो मकर संक्रांति (लगभग 14 जनवरी) को होता है। पोन्नम्बलमेडु पहाड़ी पर, दूर से एक रहस्यमय ‘मकर ज्योति’ (दिव्य प्रकाश) दिखाई देता है। लाखों भक्त इस ज्योति के दर्शन के लिए इकट्ठा होते हैं और इसे भगवान अयप्पा का दिव्य आशीर्वाद मानते हैं। हालाँकि, इसकी उत्पत्ति को लेकर बहस है, भक्त इसे एक अलौकिक घटना मानते हैं।
- पंबा नदी का महत्व: यात्रा से पहले भक्त पंबा नदी में स्नान करते हैं, जिसे गंगा के समान पवित्र माना जाता है। भक्तों का मानना है कि पंबा नदी में डुबकी लगाने से उनके पाप धुल जाते हैं और वे यात्रा के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से शुद्ध होते हैं।
- कठिन यात्रा के बावजूद ऊर्जा: पहाड़ी पर चढ़ाई और कठोर व्रत का पालन करने के बावजूद, भक्त अक्सर यात्रा के दौरान एक अलौकिक ऊर्जा और उत्साह महसूस करते हैं। यह भगवान अयप्पा की कृपा मानी जाती है।
सबरीमाला अयप्पा मंदिर तक पहुँचने के साधन और अनुमानित खर्च
सबरीमाला पहुंचने के लिए कई विकल्प हैं, लेकिन यात्रा का अंतिम चरण पैदल ही पूरा करना होता है।
पहुँचने के साधन:
- वायु मार्ग:
- निकटतम हवाई अड्डे: कोचीन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (CIAL) (लगभग 160 किमी) और तिरुवनंतपुरम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (TRV) (लगभग 170 किमी)।
- इन हवाई अड्डों से, आप टैक्सी या बस द्वारा पंबा तक पहुँच सकते हैं।
- रेल मार्ग:
- निकटतम रेलवे स्टेशन: चेंगनूर (CNGR) (लगभग 90 किमी), तिरुवल्ला (TRVL) (लगभग 95 किमी), और कोट्टायम (KTYM) (लगभग 120 किमी)।
- इन स्टेशनों से, बसें और टैक्सी सीधे पंबा के लिए उपलब्ध हैं।
- सड़क मार्ग:
- केरल राज्य सड़क परिवहन निगम (KSRTC) की बसें पंबा से प्रमुख शहरों और कस्बों से नियमित रूप से चलती हैं।
- पंबा से, लगभग 4-5 किमी की कठिन पैदल चढ़ाई (नीलाक्कल से पंबा तक बस/टैक्सी) करके मंदिर तक पहुँचना होता है। कुछ भक्त एरुमेली से पैदल यात्रा शुरू करते हैं, जो लगभग 40-50 किमी की लंबी ट्रैकिंग है।
अनुमानित खर्च (प्रति व्यक्ति):
खर्च आपकी यात्रा के तरीके, आवास, भोजन और खरीददारी पर निर्भर करेगा। यहाँ एक सामान्य अनुमान दिया गया है:
- यात्रा (आना-जाना):
- ट्रेन/बस: यदि आप मध्यम श्रेणी की ट्रेन/बस से यात्रा करते हैं, तो ₹1,500 – ₹5,000 (शहर के आधार पर)
- उड़ान: यदि आप उड़ान से आते हैं, तो ₹5,000 – ₹15,000+ (स्थान और बुकिंग के समय पर निर्भर करता है)
- स्थानीय परिवहन (हवाई अड्डे/रेलवे स्टेशन से पंबा तक): ₹1,000 – ₹3,000 (टैक्सी या बस)
- आवास:
- पंबा या नीलाक्कल में बहुत कम आवास विकल्प हैं। भक्त अक्सर पास के शहरों जैसे कोट्टायम, चेंगनूर या पंबा बेस कैंप में रुकते हैं।
- सामान्य गेस्ट हाउस/लॉज: ₹800 – ₹2,500 प्रति रात
- साधारण मठ/आश्रम: कुछ मामलों में मुफ्त या बहुत कम शुल्क पर
- भोजन:
- यात्रा के दौरान सात्विक और साधारण भोजन ही उपलब्ध होता है।
- प्रति दिन: ₹300 – ₹700
- पूजा सामग्री/प्रसाद:
- इरुमुडी और अन्य पूजा सामग्री का खर्च: ₹300 – ₹1,000
- विविध खर्च (पोशाक, दान, आदि):
- ₹500 – ₹2,000
कुल अनुमानित खर्च:
- कम बजट (ट्रेन/बस यात्रा, साधारण आवास): ₹5,000 – ₹12,000
- मध्यम बजट (फ्लाइट, आरामदायक आवास): ₹15,000 – ₹30,000+
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सबरीमाला की यात्रा केवल वित्तीय खर्च तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शारीरिक दृढ़ता और आध्यात्मिक समर्पण की भी मांग करती है।
सबरीमाला अयप्पा मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक ऐसा अनुभव है जो भक्तों के जीवन में गहरा परिवर्तन लाता है। यह आत्म-अनुशासन, भक्ति और प्राकृतिक सुंदरता का एक अनूठा संगम है, जहाँ हर भक्त भगवान अयप्पा की कृपा और शांति की तलाश में आता है।
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