हिन्दू धर्म:
हिन्दू धर्म के महानता एक शाश्वत महानता की गाथा – क्यों, कब से और कैसे?
हिन्दू धर्म, जिसे सनातन धर्म भी कहा जाता है, विश्व के सबसे प्राचीन धर्म है। यह केवल पूजा-पद्धति या आस्था का विषय नहीं, बल्कि एक संपूर्ण जीवन दर्शन है, एक समृद्ध संस्कृति है, और ज्ञान का अथाह सागर है।
जब हम प्रश्न करते हैं कि हिन्दू महान क्यों है? किस लिए है? और कब से है? तो हम वास्तव में सदियों की परंपरा, गहन दर्शन और मानवता के लिए इसके कालतीत ( यानि कितने काल से चला आ रहा है ) योगदान को समझने का प्रयास कर रहे होते हैं। आइए, इस लेख में हम हिन्दू धर्म की इसी महानता, इसके युगों के चक्र और इसकी अमर गाथाओं की गहराई में उतरने का प्रयास करें, ताकि हर पाठक इसके अद्भुत स्वरूप से अभिभूत हो जाए और इसे दूसरों के साथ साझा करने को प्रेरित हो।
Table of Contents
हिन्दू धर्म की महानता के आधार स्तंभ
हिन्दू धर्म की महानता किसी एक स्तंभ पर नहीं, बल्कि अनेक सशक्त आधारों पर टिकी हुई है। यह इसे सर्व श्रेष्ठ बनाती है
हिन्दू धर्म के महानता के मुख्य कारण इस प्रकार है
सनातन धर्म – शाश्वत और कालतीत
हिन्दू धर्म को “सनातन धर्म” कहा जाता है, जिसका अर्थ है – जो सदा से है और सदा रहेगा। इसकी कोई एक निश्चित शुरुआत या कोई एक संस्थापक नहीं है। यह उन शाश्वत नियमों और सत्यों पर आधारित है जो सृष्टि के आरंभ से ही अस्तित्व में हैं और रहेंगे। यह समय के साथ विकसित हुआ है, विभिन्न ऋषियों, मुनियों और विचारकों ने इसके ज्ञान भंडार में योगदान दिया है, परंतु इसका मूल तत्व अपरिवर्तित रहा है। यही शाश्वतता इसे महान बनाती है क्योंकि यह किसी कालखंड या व्यक्ति विशेष तक सीमित नहीं है। ज्ञान और दर्शन का असीम भंडार और
हिन्दू धर्म ज्ञान और दर्शन का एक अथाह सागर है।
वेद:
ये हिन्दू धर्म के प्राचीनतम और आधारभूत ग्रंथ हैं। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद – इन चारों वेदों में सृष्टि की उत्पत्ति, देवताओं की स्तुतियाँ, यज्ञ के विधान, आयुर्वेद, ज्योतिष, गणित और विभिन्न लौकिक एवं पारलौकिक ज्ञान का भंडार है।
उपनिषद्:
वेदों के दार्शनिक भाग, उपनिषद् “वेदान्त” भी कहलाते हैं। इनमें आत्मा, परमात्मा, ब्रह्म, मोक्ष, कर्म के सिद्धांत जैसे गूढ़ विषयों पर गहन चिंतन है। “अहं ब्रह्मास्मि” (मैं ब्रह्म हूँ), “तत्त्वमसि” (वह तुम हो) जैसे महावाक्य आत्मा और परमात्मा की एकता का उद्घोष करते हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता:
महाभारत का यह अंश हिन्दू धर्म के सबसे लोकप्रिय और प्रभावशाली ग्रंथों में से एक है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग का उपदेश देते हैं, जो आज भी जीवन के हर क्षेत्र में मार्गदर्शन प्रदान करता है। यह निष्काम कर्म, अनासक्ति और ईश्वर के प्रति समर्पण का संदेश देती है।
पुराण:
अठारह मुख्य पुराणों (जैसे विष्णु पुराण, शिव पुराण, भागवत पुराण आदि) में देवी-देवताओं की लीलाओं, सृष्टि की रचना, वंशावलियों, तीर्थों और व्रतों का विस्तृत वर्णन है। ये जटिल दार्शनिक सिद्धांतों को कथाओं के माध्यम से सरल रूप में प्रस्तुत करते हैं।
रामायण और महाभारत:
ये दो महाकाव्य हिन्दू धर्म और संस्कृति के प्राण हैं। रामायण आदर्श पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन और मूल्यों का चित्रण है, तो महाभारत धर्म, अधर्म, न्याय और कर्तव्य के जटिल प्रश्नों को कौरवों और पांडवों की कथा के माध्यम से प्रस्तुत करता है।
यह विशाल ज्ञान संपदा मनुष्य को आत्म-ज्ञान, नैतिक मूल्यों और जीवन के परम उद्देश्य (मोक्ष) की ओर प्रेरित करती है।
सहिष्णुता और स्वीकार्यता का अद्भुत संगम:
हिन्दू धर्म की एक प्रमुख विशेषता इसकी अद्भुत सहिष्णुता और स्वीकार्यता है। ऋग्वेद का प्रसिद्ध सूत्र “एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति” (सत्य एक ही है, ज्ञानीजन उसे भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते हैं) इसका मूलमंत्र है। यह धर्म किसी एक ईश्वर या एक ही पूजा पद्धति को मानने के लिए बाध्य नहीं करता। यहाँ विभिन्न देवी-देवताओं की उपासना, विभिन्न मत-पंथों और दार्शनिक विचारधाराओं का सह-अस्तित्व है। चाहे साकार उपासना हो या निराकार, ज्ञान मार्ग हो, भक्ति मार्ग हो या कर्म मार्ग – सभी को समान रूप से सम्मान दिया जाता है। यह उदारता और सबको समाहित करने की क्षमता ही हिन्दू धर्म को महान बनाती है।
वैज्ञानिकता और तार्किकता:
आधुनिक विज्ञान आज जिन कई अवधारणाओं तक पहुंचा है, उनके बीज हिन्दू धर्म के प्राचीन ग्रंथों में मिलते हैं।
ब्रह्मांड विज्ञान:
सृष्टि की उत्पत्ति, प्रलय और पुनर्सृजन का चक्रीय सिद्धांत, अनंत ब्रह्मांडों की कल्पना (अनेकानेक ब्रह्मांड), समय की सापेक्षता जैसी अवधारणाएं प्राचीन हिन्दू ग्रंथों में वर्णित हैं।
गणित और ज्योतिष:
शून्य का आविष्कार, दशमलव प्रणाली, पाई का मान, त्रिकोणमिति के सिद्धांत भारत की देन हैं। ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की गति, ग्रहणों की भविष्यवाणी आदि का सूक्ष्म विश्लेषण किया गया।
आयुर्वेद:
यह विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धतियों में से एक है, जो शरीर, मन और आत्मा के संतुलन पर जोर देती है। इसमें शल्य चिकित्सा तक का ज्ञान विद्यमान था।
योग और ध्यान:
मन और शरीर को स्वस्थ रखने तथा आत्मिक उन्नति के लिए योग और ध्यान की पद्धतियाँ आज पूरे विश्व में अपनाई जा रही हैं।
यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण हिन्दू धर्म को केवल आस्था तक सीमित न रखकर एक तार्किक और प्रयोगात्मक स्वरूप प्रदान करता है।
कला, संस्कृति और जीवनशैली:
हिन्दू धर्म केवल आध्यात्मिक मार्ग ही नहीं, बल्कि एक समृद्ध और जीवंत जीवनशैली भी है। इसके प्रत्येक पहलू में कला और सौंदर्य समाहित है।
मंदिर स्थापत्य:
भव्य और कलात्मक मंदिर, उनकी मूर्तिकला, दीवारों पर उकेरी गई गाथाएं – ये सब हिन्दू धर्म की आस्था और कला के अद्भुत उदाहरण हैं।
संगीत और नृत्य:
शास्त्रीय संगीत की विभिन्न धाराएँ (जैसे हिन्दुस्तानी और कर्नाटक संगीत), भक्ति संगीत, और विभिन्न शास्त्रीय नृत्य शैलियाँ (जैसे भरतनाट्यम, कथक, ओडिसी) सीधे तौर पर हिन्दू देवी-देवताओं और पौराणिक कथाओं से जुड़ी हैं। ये केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि साधना का भी एक रूप हैं।
पर्व और त्यौहार:
होली, दिवाली, दशहरा, नवरात्रि, जन्माष्टमी जैसे अनगिनत त्यौहार जीवन में उल्लास भरने के साथ-साथ सामाजिक समरसता और आध्यात्मिक संदेश भी देते हैं। प्रत्येक त्यौहार के पीछे कोई न कोई पौराणिक कथा या महत्वपूर्ण घटना जुड़ी होती है।
संस्कार:
जन्म से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कारों की व्यवस्था व्यक्ति के जीवन को परिष्कृत और मर्यादित करती है।
पर्यावरण चेतना:
हिन्दू धर्म में प्रकृति को पूजनीय माना गया है। नदियाँ (गंगा, यमुना, सरस्वती), पर्वत (हिमालय, विंध्याचल), वृक्ष (पीपल, तुलसी, वट), और पशु-पक्षी (गाय, सर्प, मयूर) – इन सभी को देवत्व से जोड़ा गया है। यह दृष्टि प्रकृति के संरक्षण और संतुलन की प्रेरणा देती है, जो आज के पर्यावरण संकट के युग में अत्यंत प्रासंगिक है। “माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः” (पृथ्वी मेरी माता है और मैं इसका पुत्र हूँ) का भाव इसी चेतना को दर्शाता है।
वसुधैव कुटुम्बकम् – संपूर्ण विश्व एक परिवार:
“अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥” (यह मेरा है, यह पराया है – ऐसी सोच छोटे मन वालों की होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो संपूर्ण पृथ्वी ही एक परिवार है।) यह महान विचार हिन्दू धर्म की वैश्विक दृष्टि और मानवतावादी दृष्टिकोण को दर्शाता है। यह संकीर्णता से ऊपर उठकर समस्त मानव जाति के कल्याण की कामना करता है।
हिन्दू धर्म की प्राचीनता – “कब से है?”
हिन्दू धर्म की प्राचीनता का सटीक निर्धारण करना अत्यंत कठिन है, क्योंकि यह किसी एक व्यक्ति द्वारा स्थापित धर्म नहीं है, बल्कि एक सतत प्रवाहमान धारा है। इसे “सनातन” अर्थात् शाश्वत कहा जाता है, जिसका कोई आदि और अंत नहीं।
सिंधु घाटी सभ्यता (लगभग 3300-1300 ईसा पूर्व): कई विद्वान सिंधु घाटी सभ्यता में प्राप्त मूर्तियों, प्रतीकों (जैसे पशुपतिनाथ की मुहर, मातृदेवी की मूर्तियाँ, स्वस्तिक चिह्न) और रीति-रिवाजों में हिन्दू धर्म के आरंभिक स्वरूपों को देखते हैं।
वैदिक काल (लगभग 1500-500 ईसा पूर्व): इस काल में वेदों की रचना हुई, जो हिन्दू धर्म के आधार ग्रंथ माने जाते हैं। यज्ञ परंपरा, देवों की स्तुति और दार्शनिक चिंतन इस युग की विशेषताएँ थीं।
पौराणिक काल:
वेदों और उपनिषदों के बाद पुराणों, रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों की रचना हुई, जिन्होंने हिन्दू धर्म के सिद्धांतों और कथाओं को जनमानस तक पहुँचाया।
वास्तव में, हिन्दू धर्म की जड़ें इतनी गहरी और व्यापक हैं कि इसे किसी एक कालखंड में बांधना संभव नहीं है। यह समय के साथ निरंतर विकसित और समृद्ध होता रहा है। इसकी महानता इसके शाश्वत अस्तित्व में निहित है।
युगों का विवरण और उनकी आयु
हिन्दू काल गणना के अनुसार, समय एक रैखिक गति में नहीं, बल्कि चक्रीय गति में चलता है। इस चक्र को “महायुग” या “चतुर्युग” कहा जाता है। प्रत्येक महायुग में चार युग होते हैं, जो क्रमशः आते हैं:
सत्य युग (या कृत युग):
विशेषताएँ: यह धर्म और सत्य का युग होता है। इस युग में मनुष्य अत्यंत गुणी, पुण्यात्मा, दीर्घायु और शारीरिक रूप से बलशाली होते हैं। अधर्म का लेशमात्र भी नहीं होता। लोग ध्यान और तपस्या में लीन रहते हैं। समाज में कोई वर्ग भेद, ईर्ष्या या द्वेष नहीं होता।
आयु: 17,28,000 मानव वर्ष। (इसे 4800 दिव्य वर्ष भी कहा जाता है, जहाँ 1 दिव्य वर्ष = 360 मानव वर्ष)।
धर्म के चरण: इस युग में धर्म अपने चारों चरणों (सत्य, दया, तप, दान) पर प्रतिष्ठित रहता है।
त्रेता युग:
विशेषताएँ: इस युग में धर्म का एक चौथाई क्षय हो जाता है। पुण्य कर्मों में कमी आने लगती है, और अधर्म का धीरे-धीरे प्रादुर्भाव होता है। यज्ञ और कर्मकांडों का महत्व बढ़ता है। मनुष्य सत्यवादी तो होते हैं, पर उनमें कुछ स्वार्थ और कामनाएँ आने लगती हैं। भगवान श्रीराम का अवतार इसी युग में हुआ था।
आयु: 12,96,000 मानव वर्ष। (3600 दिव्य वर्ष)।
धर्म के चरण: धर्म तीन चरणों पर टिका होता है।
द्वापर युग:
विशेषताएँ: इस युग में धर्म का आधा क्षय हो जाता है। सत्य और पुण्य में भारी कमी आती है। अधर्म, ईर्ष्या, द्वेष, कपट और युद्धों की प्रवृत्तियाँ बढ़ जाती हैं। वेदों का विभाजन इसी युग में महर्षि वेदव्यास द्वारा किया गया ताकि सामान्य लोग उन्हें समझ सकें। भगवान श्रीकृष्ण का अवतार और महाभारत का युद्ध इसी युग की महत्वपूर्ण घटनाएँ हैं।
आयु: 8,64,000 मानव वर्ष। (2400 दिव्य वर्ष)।
धर्म के चरण: धर्म दो चरणों पर ही शेष रहता है।
कलि युग (या कलियुग):
विशेषताएँ: यह वर्तमान युग है। इस युग में धर्म का केवल एक चौथाई अंश शेष रह जाता है। अधर्म, पाप, असत्य, पाखंड, लोभ, क्रोध, हिंसा और अनाचार का बोलबाला होता है। मनुष्य अल्पायु, शारीरिक और मानसिक रूप से दुर्बल तथा अनेक रोगों से ग्रस्त होते हैं। वेदों और शास्त्रों के प्रति अनास्था बढ़ जाती है। हालांकि, इस युग की एक विशेषता यह भी है कि इसमें अल्प प्रयास (जैसे केवल भगवन् नाम स्मरण) से भी मोक्ष की प्राप्ति संभव है।
आयु: 4,32,000 मानव वर्ष। (1200 दिव्य वर्ष)।
धर्म के चरण: धर्म केवल एक चरण पर ही टिका है।
इन चारों युगों का एक चक्र मिलकर एक महायुग (या चतुर्युग) कहलाता है, जिसकी कुल अवधि 43,20,000 मानव वर्ष होती है।
71 महायुगों का एक मन्वन्तर होता है।
14 मन्वन्तरों का एक कल्प होता है, जो ब्रह्मा का एक दिन कहलाता है। इतनी ही अवधि ब्रह्मा की एक रात्रि की होती है। इस प्रकार ब्रह्मा के एक दिन और एक रात में 28 मन्वन्तर होते हैं।
यह विशाल काल गणना हिन्दू धर्म की ब्रह्मांडीय दृष्टि और समय की चक्रीय अवधारणा को दर्शाती है, जो आधुनिक खगोल विज्ञान की कई अवधारणाओं से मेल खाती है।
प्रमुख हिन्दू गाथाएँ और ग्रंथ – एक विराट सागर की कुछ बूँदें
हिन्दू धर्म की गाथाओं और ग्रंथों का भंडार इतना विशाल है कि उन्हें कुछ पन्नों में समेटना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा होगा। वेद, उपनिषद्, पुराण, इतिहास (रामायण और महाभारत), स्मृतियाँ, आगम, दर्शन शास्त्र – यह सूची अंतहीन है। प्रत्येक ग्रंथ अपने आप में ज्ञान का एक अनूठा ब्रह्मांड है। यहाँ हम केवल कुछ प्रमुख गाथाओं का संक्षिप्त परिचय दे रहे हैं, जो हिन्दू मानस पर गहराई से अंकित हैं:
रामायण:
आदिकवि वाल्मीकि द्वारा रचित यह महाकाव्य मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जीवन की गाथा है। यह पिता के वचन का पालन, एकपत्नी व्रत, आदर्श भ्रातृत्व, सच्ची मित्रता, प्रजा के प्रति राजा का कर्तव्य और धर्म की अधर्म पर विजय का अद्भुत आख्यान है। श्रीराम का चरित्र एक आदर्श पुत्र, आदर्श पति, आदर्श भाई और आदर्श राजा के रूप में आज भी प्रेरणा का स्रोत है। सीता का त्याग, हनुमान की भक्ति, भरत की निष्ठा और रावण का अहंकार – ये सभी पात्र हमें जीवन के महत्वपूर्ण सबक सिखाते हैं।
महाभारत:
महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य माना जाता है। यह कौरवों और पांडवों के बीच हस्तिनापुर के सिंहासन के लिए हुए धर्मयुद्ध की कथा है। लेकिन यह केवल एक युद्ध की कहानी नहीं है, बल्कि यह धर्म, अधर्म, न्याय, अन्याय, कर्तव्य, मोह, और मानवीय भावनाओं का एक जटिल और गहन विश्लेषण है। इसी महाकाव्य का अंश है श्रीमद्भगवद्गीता, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में कर्म और धर्म का दिव्य उपदेश देते हैं। भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कर्ण, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, द्रौपदी जैसे पात्र अपने-अपने दृष्टिकोण और कर्मों के माध्यम से हमें जीवन की जटिलताओं से परिचित कराते हैं।
पुराण:
अठारह मुख्य पुराण (जैसे श्रीमद्भागवत पुराण, विष्णु पुराण, शिव पुराण, मार्कण्डेय पुराण, स्कंद पुराण आदि) और अनेक उपपुराण हैं। इनमें सृष्टि की रचना, प्रलय, देवताओं और असुरों की कथाएँ, महान राजाओं और ऋषियों की वंशावलियाँ, तीर्थों का माहात्म्य, व्रत-उपवास की विधियाँ और दार्शनिक सिद्धांतों का सरल और रोचक वर्णन मिलता है। श्रीमद्भागवत पुराण विशेष रूप से भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं और भक्ति के महत्व को उजागर करता है और भक्तों के बीच अत्यंत लोकप्रिय है। शिव पुराण भगवान शिव की महिमा और उनके विभिन्न रूपों का वर्णन करता है।
इनके अतिरिक्त, उपनिषदों की कथाएँ (जैसे नचिकेता और यम का संवाद), जातक कथाएँ (भगवान बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथाएँ, जो हिन्दू परंपरा से भी प्रभावित हैं), और विभिन्न लोक कथाएँ भी हिन्दू धर्म की समृद्ध मौखिक और लिखित परंपरा का हिस्सा हैं।
ये गाथाएँ केवल मनोरंजन का साधन नहीं हैं, बल्कि ये पीढ़ी दर पीढ़ी नैतिक मूल्यों, सांस्कृतिक विरासत और आध्यात्मिक ज्ञान का संचार करती हैं। ये हमें सिखाती हैं कि जीवन में धर्म का मार्ग कठिन हो सकता है, परन्तु अंततः सत्य और धर्म की ही विजय होती है।
हिन्दू धर्म की प्रासंगिकता आज
प्रश्न उठता है कि हजारों वर्ष पुराना यह धर्म आज के आधुनिक युग में कितना प्रासंगिक है? इसकी महानता क्या आज भी हमारे जीवन को स्पर्श करती है? उत्तर है – हाँ, और शायद पहले से भी अधिक।
मानसिक शांति और तनाव प्रबंधन: आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में तनाव, चिंता और अवसाद आम समस्याएँ हैं। हिन्दू धर्म के योग, ध्यान और प्राणायाम जैसी पद्धतियाँ मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करने में अत्यंत प्रभावी सिद्ध हुई हैं। गीता का निष्काम कर्म का सिद्धांत हमें फल की चिंता किए बिना अपने कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करने की प्रेरणा देता है।
नैतिक मूल्यों का मार्गदर्शन: सत्य, अहिंसा, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह (अनावश्यक संग्रह न करना) जैसे यम-नियम आज भी एक सुखी और संतुलित समाज के लिए आवश्यक हैं।
पर्यावरण संरक्षण: प्रकृति के प्रति हिन्दू धर्म का पूज्य भाव हमें पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास की ओर प्रेरित करता है, जो आज विश्व की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।
सार्वभौमिक भाईचारा: “वसुधैव कुटुम्बकम्” का सिद्धांत विभिन्न संस्कृतियों और राष्ट्रों के बीच सद्भाव और शांति स्थापित करने का मार्ग दिखाता है।
आत्म-खोज का मार्ग: हिन्दू दर्शन आत्मा की अमरता और आत्म-साक्षात्कार पर जोर देता है। यह मनुष्य को भौतिकता से परे अपने वास्तविक स्वरूप को जानने और जीवन के परम उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है।
निष्कर्ष: एक निरंतर बहती अमृतधारा
हिन्दू धर्म की महानता इसकी प्राचीनता, इसके विशाल ज्ञान भंडार, इसकी गहन दार्शनिकता, इसकी अद्भुत सहिष्णुता, इसकी वैज्ञानिकता, इसकी जीवंत संस्कृति और इसके शाश्वत मूल्यों में निहित है। यह एक ऐसा धर्म है जो किसी एक परिभाषा में नहीं बांधा जा सकता, बल्कि यह एक अनुभव है, एक यात्रा है – स्वयं को और इस ब्रह्मांड को जानने की।
यह “कब से है?” का उत्तर इसके “सनातन” होने में है। यह “क्यों महान है?” और “किसलिए महान है?” का उत्तर इसके द्वारा प्रदान किए गए जीवन के उच्चतम आदर्शों, ज्ञान और शांति के मार्ग में है। इसके युगों का चक्र हमें समय की विशालता और सृष्टि के निरंतर परिवर्तन का बोध कराता है। इसकी गाथाएँ हमें धर्म और नैतिकता के पथ पर चलने की प्रेरणा देती हैं।
हिन्दू धर्म एक खुला आकाश है, जहाँ हर पंछी अपनी उड़ान भर सकता है। यह एक गहरा सागर है, जिसमें जितने गोते लगाओ, उतने नए रत्न मिलते हैं। इसकी शिक्षाएँ केवल हिन्दुओं के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता के कल्याण के लिए हैं। यही कारण है कि यह धर्म आज भी लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन को आलोकित कर रहा है और भविष्य में भी करता रहेगा। इसकी महानता को शब्दों में पूर्णतः व्यक्त करना संभव नहीं, इसे तो अनुभव करके ही जाना जा सकता है। आशा है, यह लेख आपको उस अनुभव की ओर एक कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित करेगा, और आप इसकी गहराईयों को स्वयं खोजने का प्रयास करेंगे। यह एक ऐसा खजाना है जिसे जितना बांटा जाए, उतना ही बढ़ता है।
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