हर वर्ष आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाने वाला गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व न केवल भारत में, बल्कि नेपाल, भूटान और दुनिया के कई हिस्सों में बसे भारतीय समुदायों द्वारा भी श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है। वर्ष 2025 में गुरु पूर्णिमा 10 जुलाई, गुरुवार को मनाई जाएगी। इस दिन का महत्व, इसकी परंपराएं, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और बदलते समय में गुरु-शिष्य संबंध की भूमिका को विस्तार से समझना आवश्यक है।
गुरु पूर्णिमा 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त
- तारीख: 10 जुलाई 2025, गुरुवार
- पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 10 जुलाई, 1:36 AM
- पूर्णिमा तिथि समाप्त: 11 जुलाई, 2:06 AM
- चंद्रमा उदय: 11 जुलाई, 7:19 PM
इस दिन का शुभ मुहूर्त प्रातःकाल से लेकर पूर्णिमा तिथि की समाप्ति तक रहता है, इस दौरान गुरु पूजन, व्रत, और अन्य धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं।
गुरु पूर्णिमा का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
गुरु पूर्णिमा को ‘व्यास पूर्णिमा’ भी कहा जाता है, क्योंकि यह महर्षि वेदव्यास की जयंती के रूप में मनाई जाती है। वेदव्यास ने चारों वेदों का संकलन किया, महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना की और 18 पुराणों की रचना में भी उनका योगदान रहा। उन्हें हिंदू धर्म में ‘आदि गुरु’ का स्थान प्राप्त है, जिन्होंने ज्ञान के प्रकाश से समाज को आलोकित किया।
बौद्ध धर्म में गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इसी दिन भगवान गौतम बुद्ध ने सारनाथ में अपने पांच शिष्यों को पहला उपदेश दिया था, जिसे ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ कहा जाता है। इसी के साथ बौद्ध संघ की स्थापना हुई। जैन धर्म में भी यह पर्व महत्वपूर्ण है; कहा जाता है कि भगवान महावीर के प्रथम शिष्य गौतम स्वामी को इसी दिन दीक्षा मिली थी।
गुरु का स्थान भारतीय संस्कृति में
भारतीय संस्कृति में गुरु को ईश्वर से भी ऊँचा स्थान दिया गया है। संस्कृत में कहा गया है—
“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥”
गुरु न केवल शैक्षिक ज्ञान का, बल्कि जीवन मूल्यों, नैतिकता, और आध्यात्मिकता का भी संचार करते हैं। प्राचीन काल में गुरुकुल परंपरा के माध्यम से गुरु-शिष्य संबंध अत्यंत प्रगाढ़ थे। आज भी, यह परंपरा आधुनिक शिक्षा व्यवस्था और डिजिटल युग में ऑनलाइन मेंटरशिप के रूप में जीवित है।
गुरु पूर्णिमा की परंपराएं और पूजा विधि
- प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- घर के मंदिर या पूजा स्थल को साफ-सुथरा रखें।
- अपने माता-पिता, बड़े-बुजुर्गों और शिक्षकों का आशीर्वाद लें।
- गुरु या शिक्षक को पुष्प, फल, वस्त्र, दक्षिणा आदि भेंट करें।
- गुरु मंत्र का जाप करें और भजन-कीर्तन, सत्संग या ध्यान में भाग लें।
- कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं और विशेष भोजन ग्रहण करते हैं।
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आधुनिक संदर्भ में गुरु पूर्णिमा
आज के बदलते समय में गुरु का स्वरूप भी बदला है। अब गुरु केवल विद्यालय या मंदिरों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स, ऑनलाइन कोर्सेज, और सोशल मीडिया के माध्यम से भी ज्ञान का प्रसार हो रहा है। कोचिंग संस्थानों, करियर काउंसलर्स, और जीवन में मार्गदर्शन देने वाले हर व्यक्ति को आज का समाज ‘गुरु’ के रूप में स्वीकार करता है।
गुरु पूर्णिमा के दिन स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में भी शिक्षकों का सम्मान समारोह आयोजित होते हैं। विद्यार्थी अपने शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं और उनके मार्गदर्शन के लिए आभार व्यक्त करते हैं।
गुरु पूर्णिमा का सामाजिक और मनोवैज्ञानिक महत्व
गुरु पूर्णिमा केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह समाज में कृतज्ञता, विनम्रता और अनुशासन का संदेश भी देता है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि जीवन में सही मार्गदर्शन, प्रेरणा और शिक्षा के बिना सफलता अधूरी है। गुरु-शिष्य संबंध केवल ज्ञान तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन के हर मोड़ पर नैतिकता, आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच विकसित करने में भी सहायक है।
निष्कर्ष
गुरु पूर्णिमा 2025 न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह जीवन में गुरु के महत्व, ज्ञान की शक्ति और मार्गदर्शन के प्रति कृतज्ञता का उत्सव है। 10 जुलाई को मनाया जाने वाला यह पर्व हमें अपने सभी गुरुओं—चाहे वे आध्यात्मिक हों, शैक्षिक हों या जीवन के किसी भी क्षेत्र में मार्गदर्शक हों—के प्रति आभार व्यक्त करने का अवसर देता है।
यह पर्व भारतीय संस्कृति की उस महान परंपरा को जीवंत रखता है, जिसमें गुरु को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है और ज्ञान को सर्वोत्तम धन माना गया है। आधुनिक युग में भी गुरु पूर्णिमा का संदेश उतना ही प्रासंगिक है—ज्ञान, मार्गदर्शन और कृतज्ञता की भावना को जीवन में अपनाएं और समाज को प्रगति की ओर अग्रसर करें।