Sanatan Dharma aur Science: Vedon ka Vijnanik Gyan | GreatHindu

जानिए वेद और पुराणों में छुपे वैज्ञानिक रहस्य। Big Bang Theory, Quantum Physics, Cosmology – आधुनिक विज्ञान और सनातन धर्म के अद्भुत सम्बन्ध को समझें।

सनातन धर्म और आधुनिक विज्ञान: क्या वेदों और पुराणों में छुपा है वैज्ञानिक ज्ञान का भंडार?

1. प्रस्तावना: विज्ञान V/S आस्था?

आज का युग विज्ञान का युग है, जहाँ हर चीज़ का तार्किक और प्रमाणिक विवरण मांगा जाता है। अक्सर लोग धर्म और विज्ञान को एक-दूसरे का विरोधी मानते हैं। लेकिन सनातन धर्म, जिसकी जड़ें वेदों और पुराणों में हैं, एक ऐसा दर्शन प्रस्तुत करता है जो विज्ञान से टकराता नहीं, बल्कि उसके साथ हाथ में हाथ डालकर चलता प्रतीत होता है। हैरानी की बात यह है कि हज़ारों साल पहले लिखे गए हमारे धर्मग्रंth आधुनिक वैज्ञानिक खोजों से अद्भुत रूप से मेल खाते हैं। यह लेख सनातन धर्म और आधुनिक विज्ञान के बीच के इन्हीं चमत्कारी सम्बन्धों पर प्रकाश डालेगा।

2. सृष्टि की उत्पत्ति: बिग बैंग थ्योरी V/S नासदीय सूक्त

आधुनिक विज्ञान के अनुसार, हमारे ब्रह्मांड की शुरुआत एक अत्यंत सघन और गर्म बिंदु के विस्फोट (बिग बैंग) से हुई थी।अब ऋग्वेद के नासदीय सूक्त (10.129) को पढ़िए:”नासदासीन नो सदासीत्तदानीं नासीद्रजो नो व्योमा परो यत्।किमावरीवः कुह कस्य शर्मन्नम्भः किमासीद्गहनं गभीरम्॥”(अनुवाद: उस (सृष्टि के पूर्व) न सत था, न असत था। न वायु थी, न आकाश। क्या छिपा था, कहाँ, किसके आश्रय में? क्या जल था, गहन, गम्भीर?)यह श्लोक “शून्य” या “वैक्यूम” की अवस्था का वर्णन करता है, जहाँ न तो अस्तित्व था और न ही अनस्तित्व। इसके आगे का श्लोक कहता है:”तम आसीत्तमसा गूढमग्रे प्रकेतं सलिलं सर्वमा इदम्।तुच्छेनाभ्वपिहितं यदासीत्तपसस्तन्महिना जायतैकम्॥”(अनुवाद: अंधकार था, और अंधकार से ढका हुआ यह सब कुछ जल रूपी था। वह शून्य से ढका हुआ था, और तप (ऊर्जा) के प्रभाव से वह एक (ब्रह्म) प्रकट हुआ।)यहाँ “तप” (ऊर्जा/Heat) शब्द का प्रयोग और फिर एकल इकाई (Singularity) का उद्भव, बिग बैंग थ्योरी से डरावनी समानता रखता है।

3. ब्रह्मांड की संरचना और कोशिका: एक अद्भुत समानता

विष्णु पुराण और भागवत पुराण में ब्रह्मांड की संरचना को अंडे (ब्रह्मांड/ Cosmic Egg) के रूप में वर्णित किया गया है, जिसे ‘ब्रह्माण्ड’ कहा गया। है ना मज़ेदार? आधुनिक खगोल विज्ञान भी ब्रह्मांड को एक विस्तारशील गोलाकार संरचना के रूप में देखता है।इससे भी ज़्यादा आश्चर्यजनक बात यह है कि हमारे शरीर की मूल इकाई कोशिका (Cell) की संरचना और हमारे सौर मंडल (Solar System) की संरचना में अद्भुत समानता है। जिस तरह नाभिक (Nucleus) कोशिका का केंद्र है और ग्रह उसकी परिक्रमा करते हैं, ठीक उसी तरह सूर्य सौर मंडल का केंद्र है और ग्रह उसकी परिक्रमा करते हैं। सनातन दर्शन तो हमेशा से कहता आया है – “यत्पिण्डे तद्ब्रह्माण्डे” (जो कुछ सूक्ष्म शरीर में है, वही इस ब्रह्माण्ड में है)।

4. गर्भाधान और भ्रूण विज्ञान: महर्षि चरक और वेदों में वर्णन

आधुनिक भ्रूण विज्ञान (Embryology) मानता है कि भ्रूण का विकास कोशिकाओं के विभाजन से होता है और गर्भ में बच्चा विभिन्न अवस्थाओं से गुज़रता है।इसकी पुष्टि महर्षि चरक और सुश्रुत ने अपने ग्रंथों में हज़ारों वर्ष पूर्व ही कर दी थी। लेकिन इससे भी पुराना वर्णन ऐतरेय उपनिषद (2.1-4) और भागवत पुराण (3.31.1-6) में मिलता है, जहाँ भगवान कपिल देव माता देवहूति को गर्भाधान और भ्रूण के विकास की प्रक्रिया समझाते हैं। इन ग्रंथों में गर्भ के अंदर बच्चे के विकास को सप्ताह के हिसाब से विभिन्न चरणों में बताया गया है, जो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान से पूरी तरह मेल खाता है।

5. परमाणु सिद्धांत: महर्षि कणाद और क्वांटम भौतिकी

परमाणु सिद्धांत (Atomic Theory) का श्रेय आमतौर पर John Dalton को दिया जाता है, लेकिन उनसे लगभग 2600 वर्ष पूर्व, भारत के महर्षि कणाद ने “वैशेषिक दर्शन” की रचना की थी और “परमाणुवाद” का सिद्धांत दिया था।महर्षि कणाद के अनुसार:· हर पदारth अत्यंत सूक्ष्म, अविभाज्य और शाश्वत कणों से मिलकर बना है, जिन्हें ‘परमाणु’ कहा जाता है।· दो परमाणु मिलकर एक ‘द्वयणुक’ बनाते हैं, और तीन परमाणु मिलकर एक ‘त्रयणुक’। यह आधुनिक रसायन विज्ञान के अणु (Molecules) की अवधारणा के समान है।· उन्होंने गति, ऊर्जा और बल के बीच के सम्बन्ध को भी समझाया।यह सब क्वांटम भौतिकी की नींव जैसा प्रतीत होता है।

6. समय की धारणा: वैदिक काल चक्र और वैज्ञानिक पैमाना

सनातन धर्म में समय की गणना चक्रीय और अत्यंत विस्तृत है, जो आधुनिक भूविज्ञान और खगोल विज्ञान से मेल खाती है।· 1 परमाणु = लगभग 26 microseconds· 1 युग (सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग) = लाखों वर्षों का चक्र· 4 युग = 1 महायुग (लगभग 4.32 Million Years)· 1000 महायुग = 1 कल्प (ब्रह्मा का 1 दिन, लगभग 4.32 Billion Years)वैज्ञानिक मानते हैं कि पृथ्वी की आयु लगभग 4.54 Billion Years है, जो एक कल्प के बहुत करीब है। यह कोई संयोग नहीं हो सकता।

निष्कर्ष: विज्ञान और आध्यात्मिकता की एकसूत्रता

सनातन धर्म कभी भी अंधविश्वास पर आधारित नहीं रहा। यह एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण और जिज्ञासा पर आधारित दर्शन रहा है, जिसने ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने का प्रयास किया। वेद और पुराण प्राचीन ऋषियों-मुनियों द्वारा की गई गहन खोज और अवलोकन का परिणाम हैं।आधुनिक विज्ञान धीरे-धीरे उन्हीं सत्यों को खोज रहा है जिन्हें हमारे पूर्वज हज़ारों साल पहले जान चुके थे। दरअसल, विज्ञान और सनातन धर्म दोनों ही एक ही सत्य की खोज कर रहे हैं; बस उनके तरीके और भाषा अलग है। एक बाहरी दुनिया की खोज करता है तो दूसरा आंतरिक दुनिया की। जब ये दोनों मिलते हैं, तब एक सम्पूर्ण सत्य का दर्शन होता है।आपकी क्या राय है? क्या आपको लगता है कि विज्ञान अंततः सनातन धर्म के सिद्धांतों की पुष्टि करेगा? नीचे कमेंट में ज़रूर बताएं।

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